Thursday, November 6, 2008
हिन्दी?
Tuesday, September 16, 2008
अंग्रेजी की पैंठ
अंग्रेजी की पैंठ
अंग्रेजी की पैंठ लगी है,
भारत के कस्बे गॉंवों में;
हाय बाय मम्मी डैडी,
सुन्दरी सुरा दिखतीं राहों में।
गौण हुए सब देव देवियां,
पर्व तीज सब बिसराये हैं;
केक बर्थडे वैलेन्टाइन, गूंज रहे हैं अंधियारों में।
अन्तिम विजय हमारी है।
पुन: घिरे संकट के बादल,
इसीलिये मन भारी है;
किन्तु धर्मध्वज की छाया में
अन्तिम विजय हमारी है।
यही अटल विश्वास फूंकता
पुन: हिन्दु में नव उत्साह,
कुटिल कुलक्षित राष्ट्रद्रोहियों
से रण की तैयारी है॥
हिन्दु अस्मिता के गौरव पर,
जो प्रहार करते जाते;
राष्ट्र कल्पना से अनजाने,
गीत सैक्युलर हैं गाते।
जाति पंथ क्षेत्र मजहब में,
बांट दिये भारतवासी;
हिन्दु या भारत है केवल,
अब कुछ लोगों की थाती॥
एक विभाजन से अब,
करते दूजे की तैयारी है, किन्तु........।
है अपना भी दोष भुलाये,
हैं अपनी संस्कृति इतिहास,
हम संवेदनशून्य हो रहे,
जब होता अपना उपहास।
परकीयों ने नहीं निजों ने,
किया राम पर ही आक्षेप;
यही धर्मनिर्पेक्ष नीति है,
यही अशुभ इसका संकेत॥
धर्महीन होगा भारत तो,
अपनी जिम्मेदारी है, किन्तु.............।
हमने शंकर बन विष पीकर,
शिव बनकर कल्याण किया,
शरणागत पापी विद्रोही,
को भी अभय का दान दिया।
भूभागों पर नहीं मनों पर,
विजय प्राप्त करने वाले;
किन्तु नहीं काल से भी हम,
रण में हैं डरने वाले॥
हुए अचेतन तो समझो अब,
काल हमीं पर भारी है, किन्तु.......।
हमने कब विदेश में जाकर,
किसको दास बनाय है?
निज विचार विश्वास रोप कर,
किसका धर्म डिगाया है।
तो भी परकीयों ने आकर,
हाथ लिये नग्न तलवार;
काटे अगणित शीश हिन्दु के,
स्मरण रहे वह अत्याचार॥
अब भी पोप व जेहादी की,
वही कुटिलता जारी है, किन्तु.....।
गंगा को Ganges मन्दिर को,
बुतख़ाना कहने वालो,
छोड़ नेह आंग्ल उर्दू का,
निज भाषा को अपना लो।
दोनों पराधीनता की और्,
परकीयों की भाषा हैं;
उनका स्वार्थ सिद्ध हो तो हो,
अपने लिये निराशा हैं॥
निज संस्कृति व निज भाषा पर,
कुटिल आक्रमण जारी हैं, किन्तु........।
अंग्रेज़ी
हिन्दी- हिन्दू- हिन्दुस्थान की जय बोलो॥
सबका सदा करूं अभिनन्दन,
भारत माता की भाषा में
करूं मैं भारत मॉं का वन्दन।
शाश्वत और चिरन्तन हिन्दू संस्कृति का आराधक में हूं,
राष्ट्रविरोधी षडयन्त्रों का अटल अकिंचन बाधक हूं मैं;
मुझको कहो कम्युनल चाहे या संकुचितमना कह लो,
पर मेरे संग हिन्दी- हिन्दू- हिन्दुस्थान की जय बोलो॥
मेरा परिचय
कविता मेरे वैचारिक संघर्षों का दर्पण है;
कविता में आलोकित होता है मेरा व्यक्तित्व निरापद्,
वैचारिक श्रेष्ठता प्राप्ति पर्वत का आरोहण है।
निश्छल और निष्कपट प्रेम का पुट मेरी कविता में,
सत्य और स्निग्ध वचनों का पुट मेरी कविता में;
मानवता के मंगल की अटूट निष्ठा से,
पूरित मेरी कविताओं का घर आंगन है॥
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About Me
- डॉ. जय प्रकाश गुप्त
- डॉ. जय प्रकाश गुप्त शिक्षा- चिकित्सा- स्नातक (महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक) पर्यावरण (Environmental Education)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) पत्रकारिता (Journalism & Mass Comm)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) PGDT (KUK) चिकित्सकीय वृत्त- Intern- श्री मस्तनाथ सामान्य चिकित्सालय, अस्थलबोहर (रोहतक), सामान्य अस्पताल, अम्बाला छावनी | चिकित्साधिकारी (पूर्व)- जनलाभ धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, सेवा भारती चिकित्सालय अम्बाला छावनी | चिकित्सक- भगवान महावीर धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अम्बाला छावनी | लेखकीय वृत्त- संपादन- महाविद्यालय पत्रिका (आयुर्वेद प्रदीप)- छात्र संपादक (English Section), INTEGRATED MEDICINE (Monthly Medical Magazine) प्रकाशन- कविता- लेख- कहानी- व्यंग्य अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित; चिकित्सा, शिक्षा, धर्म, संस्कृति, मनोविज्ञान विषयक १६ शोधपत्र प्रकाशित | समीक्षा- अनेकों कविता संग्रह, लेखमाला ग्रंथों की समीक्षा | अमृतकलश चिकित्सालय, हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, अम्बाला छावनी | ईमेल- chikitsak@rediffmail.com, c