मैं हिन्दु, हिन्दी भाषी हूं, सदा सभी से मितभाषी हूं।
द्वेष ईर्ष्या नहीं किसी से, सरल विनीत मैं सहवासी हूं॥
संस्कृत और संस्कृति को मैं, पूज्य मान कर चरण पकारूं।
है प्रयास मेरा हिन्दु संस्कारों को जीवन में ढ़ालूं॥
मातृभूमि के ऋण से यूं तो, उऋण नहीं हो सकूं कदाचित।
भाषा संस्कृति की सेवा से, कुछ तो में भी पुण्य कमा लूं॥
द्वेष ईर्ष्या नहीं किसी से, सरल विनीत मैं सहवासी हूं॥
संस्कृत और संस्कृति को मैं, पूज्य मान कर चरण पकारूं।
है प्रयास मेरा हिन्दु संस्कारों को जीवन में ढ़ालूं॥
मातृभूमि के ऋण से यूं तो, उऋण नहीं हो सकूं कदाचित।
भाषा संस्कृति की सेवा से, कुछ तो में भी पुण्य कमा लूं॥