जिस नारी का स्पर्श जगाता काम भाव पुरुषों के मन में,
अथवा होता शील भंग नर का जिसके केवल दर्शन में।
उग्र रूप देवी का भय उपजाता है दानव को रण में,
शान्त स्वरूपा वह नारी हर सकती पीड़ा को इक क्षण में॥
जिन उत्तुंग हिमशिखों की ज्वाला भस्मित करती है मोहन में,
शिशु की विकल क्षुधा का पोषक क्षीर भरा उस पावन स्तन में॥।
नारी ही ब्रह्मा का मूर्त्तरूप धरे प्रकटी धरती पर,
विष्णु रूप नारी ही करती है उपकार सदा मानव पर,
शिव स्वरूप में नारी है कल्याणमयी मां,
स्वयं हलाहल पीती शिशु की प्राणमयी मां।
यों ही नहीं ‘मातृ देवो भव’ कहा ऋषि ने,
पूज्य मान पूजा की थी साकार ऋषि ने,
नारी जहां हो पूजित वहां देव बसते हैं,धर्मशास्त्र के शब्द सदा ये ही रटते हैं॥
अथवा होता शील भंग नर का जिसके केवल दर्शन में।
उग्र रूप देवी का भय उपजाता है दानव को रण में,
शान्त स्वरूपा वह नारी हर सकती पीड़ा को इक क्षण में॥
जिन उत्तुंग हिमशिखों की ज्वाला भस्मित करती है मोहन में,
शिशु की विकल क्षुधा का पोषक क्षीर भरा उस पावन स्तन में॥।
नारी ही ब्रह्मा का मूर्त्तरूप धरे प्रकटी धरती पर,
विष्णु रूप नारी ही करती है उपकार सदा मानव पर,
शिव स्वरूप में नारी है कल्याणमयी मां,
स्वयं हलाहल पीती शिशु की प्राणमयी मां।
यों ही नहीं ‘मातृ देवो भव’ कहा ऋषि ने,
पूज्य मान पूजा की थी साकार ऋषि ने,
नारी जहां हो पूजित वहां देव बसते हैं,धर्मशास्त्र के शब्द सदा ये ही रटते हैं॥
No comments:
Post a Comment