Friday, February 20, 2009

‘मातृ देवो भव’

जिस नारी का स्पर्श जगाता काम भाव पुरुषों के मन में,
अथवा होता शील भंग नर का जिसके केवल दर्शन में।
उग्र रूप देवी का भय उपजाता है दानव को रण में,
शान्त स्वरूपा वह नारी हर सकती पीड़ा को इक क्षण में॥
जिन उत्तुंग हिमशिखों की ज्वाला भस्मित करती है मोहन में,
शिशु की विकल क्षुधा का पोषक क्षीर भरा उस पावन स्तन में॥।
नारी ही ब्रह्मा का मूर्त्तरूप धरे प्रकटी धरती पर,
विष्णु रूप नारी ही करती है उपकार सदा मानव पर,
शिव स्वरूप में नारी है कल्याणमयी मां,
स्वयं हलाहल पीती शिशु की प्राणमयी मां।
यों ही नहीं ‘मातृ देवो भव’ कहा ऋषि ने,
पूज्य मान पूजा की थी साकार ऋषि ने,
नारी जहां हो पूजित वहां देव बसते हैं,धर्मशास्त्र के शब्द सदा ये ही रटते हैं॥

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डॉ. जय प्रकाश गुप्त शिक्षा- चिकित्सा- स्नातक (महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक) पर्यावरण (Environmental Education)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) पत्रकारिता (Journalism & Mass Comm)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) PGDT (KUK) चिकित्सकीय वृत्त- Intern- श्री मस्तनाथ सामान्य चिकित्सालय, अस्थलबोहर (रोहतक), सामान्य अस्पताल, अम्बाला छावनी | चिकित्साधिकारी (पूर्व)- जनलाभ धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, सेवा भारती चिकित्सालय अम्बाला छावनी | चिकित्सक- भगवान महावीर धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अम्बाला छावनी | लेखकीय वृत्त- संपादन- महाविद्यालय पत्रिका (आयुर्वेद प्रदीप)- छात्र संपादक (English Section), INTEGRATED MEDICINE (Monthly Medical Magazine) प्रकाशन- कविता- लेख- कहानी- व्यंग्य अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित; चिकित्सा, शिक्षा, धर्म, संस्कृति, मनोविज्ञान विषयक १६ शोधपत्र प्रकाशित | समीक्षा- अनेकों कविता संग्रह, लेखमाला ग्रंथों की समीक्षा | अमृतकलश चिकित्सालय, हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, अम्बाला छावनी | ईमेल- chikitsak@rediffmail.com, c