मर्यादा और शील न छोड़ो, निज संस्कृति से नाता जोड़ो,
अनुचित है इसको अपनाना, छोड़ो valentine को छोड़ो।
आड़ में इसके भारतीयता घुट अपना दम तोड़ रही है,
पश्चिम की बेमेल विकृति हमें कहां ला मोड़ रही है;
तनिक ठहर कर सोचो तो फिर चाहे जहां स्वयं को मोड़ो,
अनुचित है इसको अपनाना, छोड़ो valentine को छोड़ो।
भाई बहन का रक्षा बन्धन होली का निष्पाप मनाना,
भैय्या दूज के दिन बहना का भाई के माथे तिलक लगाना;
अन्य अनेक पर्वों पर संबंध शीलता से तुम जोड़ो,
अनुचित है इसको अपनाना, छोड़ो valentine को छोड़ो।
है कोई सभ्यता जहां हो करवा चौथ सदृश व्रत उत्तम,
कैसे जग को पिला जलामृत यहां नारियां रहतीं जल बिन;
इन्ही व्रतों उपवासों सा कुछ नया ही तुम आयाम टटोलो,
अनुचित है इसको अपनाना, छोड़ो valentine को छोड़ो।
valentine प्यार नहीं है, ये अच्छा संस्कार नहीं है,
valentine जो होता है, प्यार का वह व्यवहार नहीं है
व्यवहारिकता के लिये सही प्यार को इसमें नहीं सिकोड़ो,
अनुचित है इसको अपनाना, छोड़ो valentine को छोड़ो।
Friday, February 13, 2009
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- डॉ. जय प्रकाश गुप्त
- डॉ. जय प्रकाश गुप्त शिक्षा- चिकित्सा- स्नातक (महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक) पर्यावरण (Environmental Education)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) पत्रकारिता (Journalism & Mass Comm)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) PGDT (KUK) चिकित्सकीय वृत्त- Intern- श्री मस्तनाथ सामान्य चिकित्सालय, अस्थलबोहर (रोहतक), सामान्य अस्पताल, अम्बाला छावनी | चिकित्साधिकारी (पूर्व)- जनलाभ धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, सेवा भारती चिकित्सालय अम्बाला छावनी | चिकित्सक- भगवान महावीर धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अम्बाला छावनी | लेखकीय वृत्त- संपादन- महाविद्यालय पत्रिका (आयुर्वेद प्रदीप)- छात्र संपादक (English Section), INTEGRATED MEDICINE (Monthly Medical Magazine) प्रकाशन- कविता- लेख- कहानी- व्यंग्य अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित; चिकित्सा, शिक्षा, धर्म, संस्कृति, मनोविज्ञान विषयक १६ शोधपत्र प्रकाशित | समीक्षा- अनेकों कविता संग्रह, लेखमाला ग्रंथों की समीक्षा | अमृतकलश चिकित्सालय, हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, अम्बाला छावनी | ईमेल- chikitsak@rediffmail.com, c
2 comments:
जय जी . हिन्दू संस्कृति के प्रति आपका प्रेम सराहनीय है, यद्यपि मैं valentine डे मनाये जाने की तरफदारी नहीं कर रहा हूँ , किन्तु हमारी संस्कृति में तो पूरी वसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु के रूप में अर्थात मधुमास के रूप में जाना जाता है , जिस प्रकार आप मधुमास के बारे में सोचते हैं उसी प्रकार अपने विचारों को विस्तृत करते हुए वैलेंटाइन डे के स्वस्थ पहलू पर अपनी अभिव्यक्ति करें
समस्या ये है हर चीज़ को देखने का नजरिया बदल गया है .आज की युवा पीढी प्रेम को समर्पित इस दिन को मात्र स्त्री और पुरुष के संबध में देखती है ,आवश्यकता है दृष्टि को विस्तार देने की .
क्या किसी का मृत्यु दिवस भी इतनी धूम-धाम से मनाया जाता है ?
यह दिन मानव मात्र से प्रेम को समर्पित है इससे बस सीख लेनी चाहिए .बात पश्चिम और पूरब की नहीं जो और जितना सही है उसे स्वीकारने में कोई बुराई नहीं ..............
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