Thursday, March 17, 2011

ब्रज की होरी


दृश्य १-
होली पे गुलाल सब ग्वाल बाल खेल रहे,
गोपियों ने लीन्हीं आज हाथ पिचकारी है।
गोकुल के ग्वाल- बाल गोपियों से दूर खड़ी,
छोर से निहारे वृषभानु की दुलारी है॥
हाथ पिचकारी नहीं प्रेम रंग में है रंगी,
आई बरसाने से ये राधिका कुमारी है॥।
खोज रही कान्हा कू सुध देह की बिसार,
भीज रही वाकी कञ्चुकी और सारी है॥॥


दृश्य २-
ऊधो बलराम संग फाग का आनन्द लेते,
गोपियों के बीच घिर आए बनवारी हैं।
कोऊ पीतपट खींचे कोऊ है गुलाल मलै,
कोऊ ने है छीन लीन्हीं वाकी पिचकारी है॥


दृश्य ३-
राधिका ने गोपियां हटाय दीन्हीं एक मांहीं,
जाय कान्हां पास वाकी आरती उतारी है।
रंग संग फाग तन खेल रहे राधा- कृष्ण,
सार नन्दगाँव जाय रहा बलिहारी है॥

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डॉ. जय प्रकाश गुप्त शिक्षा- चिकित्सा- स्नातक (महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक) पर्यावरण (Environmental Education)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) पत्रकारिता (Journalism & Mass Comm)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) PGDT (KUK) चिकित्सकीय वृत्त- Intern- श्री मस्तनाथ सामान्य चिकित्सालय, अस्थलबोहर (रोहतक), सामान्य अस्पताल, अम्बाला छावनी | चिकित्साधिकारी (पूर्व)- जनलाभ धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, सेवा भारती चिकित्सालय अम्बाला छावनी | चिकित्सक- भगवान महावीर धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अम्बाला छावनी | लेखकीय वृत्त- संपादन- महाविद्यालय पत्रिका (आयुर्वेद प्रदीप)- छात्र संपादक (English Section), INTEGRATED MEDICINE (Monthly Medical Magazine) प्रकाशन- कविता- लेख- कहानी- व्यंग्य अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित; चिकित्सा, शिक्षा, धर्म, संस्कृति, मनोविज्ञान विषयक १६ शोधपत्र प्रकाशित | समीक्षा- अनेकों कविता संग्रह, लेखमाला ग्रंथों की समीक्षा | अमृतकलश चिकित्सालय, हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, अम्बाला छावनी | ईमेल- chikitsak@rediffmail.com, c