Friday, March 18, 2011
होली की ठिठोली
फागुन मास में लै गईं सखियाँ
कान्हा कू नवनीत बहाने
कालिन्दी में धकेल दियो
कारे कू कारा रंग छुड़ाने
बरसाने में घर के भीतर,
माखन देह पे भाँड दियो तब।
छीन पीतपट पिचकारी ते,
रंग दियो कान्हा गोपिसभा ने॥
मुख और गाल पे हाथन ते,
जो गुलाल मल्यो प्यारी राधा ने।
सब सखियन ने रगड़ दियो,
वाके कपोल होली के बहाने॥
कहा कन्हैया फिर अय्यो,
माखन खाने होरी खेलन कू।
याद रख्यो इन सखियन कू,
वृषभानुसुता और ये बरसाने॥
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About Me
- डॉ. जय प्रकाश गुप्त
- डॉ. जय प्रकाश गुप्त शिक्षा- चिकित्सा- स्नातक (महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक) पर्यावरण (Environmental Education)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) पत्रकारिता (Journalism & Mass Comm)- परास्नातक (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) PGDT (KUK) चिकित्सकीय वृत्त- Intern- श्री मस्तनाथ सामान्य चिकित्सालय, अस्थलबोहर (रोहतक), सामान्य अस्पताल, अम्बाला छावनी | चिकित्साधिकारी (पूर्व)- जनलाभ धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, सेवा भारती चिकित्सालय अम्बाला छावनी | चिकित्सक- भगवान महावीर धर्मार्थ चिकित्सालय, अम्बाला छावनी, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अम्बाला छावनी | लेखकीय वृत्त- संपादन- महाविद्यालय पत्रिका (आयुर्वेद प्रदीप)- छात्र संपादक (English Section), INTEGRATED MEDICINE (Monthly Medical Magazine) प्रकाशन- कविता- लेख- कहानी- व्यंग्य अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित; चिकित्सा, शिक्षा, धर्म, संस्कृति, मनोविज्ञान विषयक १६ शोधपत्र प्रकाशित | समीक्षा- अनेकों कविता संग्रह, लेखमाला ग्रंथों की समीक्षा | अमृतकलश चिकित्सालय, हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, अम्बाला छावनी | ईमेल- chikitsak@rediffmail.com, c
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